Friday 2 January 2015

बीती रात
गुज़रे दिनों की कशिश थामें
धडकने शोर करती रहीं,
नब्ज़ थिरकती रहीं और
मैं...तुम्हें
हमेशा की तरह
खामोशियों के खत लिखती रही

पर
इस बार सोचा है
इन खतों को लफ्ज़ न दे कर
बस ख्याल दूंगी....

स्याही
मेरे चुम्बन की
महक मेरे लबों की और
छुअन....मुझ सी ...

चाहती हूँ
तुम वैसे ही मेरे ख़त पढो जैसे
मैं उन्हें सजाऊं ....

ख्याल बुन कर
महक चुन कर...चुम्बन रख...
अहिस्ता से छुना...

देखना....
तुम मेरी मोहब्बत पढ़ लोगे

पढ़ लोगे न....?

No comments:

Post a Comment