Wednesday 30 April 2014

करीब
हो कर भी
लगता है
बहुत दूर हो तुम

चलते
हो साथ मगर
नज़र नहीं आते
जैसे अब
साया हो तुम

साथ हो पर …..कैसे ?
मैं तुम नहीं
बन सकती
तुम और मैं
हम नहीं हो सकते
ये कैसा बेतुका
साज़ हो तुम

ये जो
बातें है ज़माने क़ी
ये मुझसे नहीं है न तुम से
न जोड़ो इन्हें हमारे
दरमियाँ

बेचैन हूँ मैं
तुम्हारी होने के लिए


जाओ मेरे बन के
मेरे लिए ……..आ जाओ न ……..

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