Saturday 19 April 2014

बस तू न मनायेगा…..

मैं
रूठती हूँ
बार बार ये सोच कर
कि शायद तू मुझे मनायेगा

खींच कर
बाँहों में अपनी
मुझे हँसी दिलायेगा

मैं
बिगड़ती ही जाऊँगी
बनावटी गुस्सा जताऊँगी
छूटने को तेरी पकड़ से
हल्का- हल्का छटपटाउंगी

तू
बाँध कर मेरे हाथों को
अपने हाथों में
लुहावने नाम दोहराएगा

पर
कितना वक़्त हुआ
मुझे रूठे हुए और
न तू आया न तेरी पुकार कोई
ठण्डी आहों से
भर आया दिल मेरा

मैं
भूल गयी थी
जैसे अक्सर
ख्यालों में यूँही भूल जाया करती हूँ
कि प्यार तो
मैं तुम्हें करती हूँ
ऐसे ही ख्याल रोज़ बुनती हूँ
कुछ पल
सोच कर मुस्कुरा लेती हूँ
और जब
कल फिर रुठने का
ख्याल मुझे आयेगा
मेरा मन
ख्यालों में यूँही गोते खायेगा

मैं ख़ुद ही
मान जाऊँगी हमेशा की तरहा
दिल खुद-बा-खुद बहल जायेगा
अफ़सोस
बस तू न मनायेगा

बस तू न मनायेगा………..

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