Tuesday 11 March 2014

मेरी 
बनायीं गयी तस्वीरें
क़ैद है
बंद लिफ़ाफ़े में

जब कभी भी
अपने कमरे में बैठ
बीते कुछ
पल याद करती हूँ
ये लिफ़ाफ़ा
खुदबखुद खुल जाता है
और ये तस्वीरें
साँस लेने लगती है

इनकी साँसों की
आवाज़ इतनी गहरी है की
मैं अपनी
तन्हाई से उबर आती हूँ
अक्सर ये
तस्वीरें मुझसे पूछती है
क्यूँ नहीं
तुम हमें खुले में साँस
लेने देतीं
क्यूँ 
इस दुनिया को
हमसे महरूम रखा है........ क्यूँ

और
मैं हर बार
मुस्कुरा कर उनको
समझाती हूँ

तुम जो
परायी हो गयीं तो
मैं
किस के सहारे जियुँगी
तुम ही तो
अब मेरा जीवन हो
डरती हूँ
तुम्हें खोने से
तुम्हारे अलग़ होने से
इसलिए तो तुम्हें
सहेजती हूँ, समेटती हूँ
सजाती हूँ, रंग भरती हूँ
और मेरे यूँ कहते ही 
मेरी तस्वीरें 
मुझे बाँहों में भर लेती है.......

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