Saturday 15 March 2014

हल्की हल्की सी
ये ख्वाहिशें
नर्म, मख़मली छुअन सी

दिल के झरोखों से
झाँका करती है
दुनिया की भीड़ को
कभी डरती हैं, छुपती हैं
और अक्सर सहम कर
झरोखें बंद कर
आ बैठतीं हैं धड़कनों संग

ख्वाहिशें मासूम है बहुत
पर हठी प्रवृति कि
डटी रहेंगी पर ख़त्म न होंगी
उड़ती है तमन्नाओं के
आसमां में
ऊँची ...... बहुत ऊँची

दूर तक फैला है इनका
जहान जो सतरंगी
इरादों से सजा,
खूबसूरत ख्यालों से बुना है
महकता है अरमानों के इत्र से,
दहकता है सपनों के अलाव से

इनका होना और
पूरा होना सवाल है अब तक
जवाब छुपा है परिवर्तन कि
भाषा में, नियमों के परे
कायदों के पीछे
और इनको लांगना
फिर से एक सवाल
उठाना है जिसके अंत का
कोई अंत नहीं

फिर भी कोशिश कर रही हूँ
जवाब तलाश रही हूँ
पर दुनिया के ढंग देख
भटकने का गुमां होता है
अपनी इच्छाशक्ति
पर भी कभी कभी
शक़ होता है

मैं गुम न हो जाऊँ कहीं
इसलिए इन
ख्वाहिशों को हर दिन
उम्मीदों का पानी देती हूँ
इरादों की धूप और
विश्वास कि स्वस्थ हवा देती हूँ
ताक़ि ये जीती रहें
और मैं भी ……..

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