Monday 27 January 2014

बरसी कल रात
गरज़ कर तन्हाई
भिगो दिए सारे गम
ख़ामोशी के
खेलती रही अजनबी
परछाइयाँ
निचोड़ती रही अपना दामन
यादें रात भर
बह गये वक़्त के बिखरे पन्ने

मैंने भी ज़ेहन से दाग़
धो दिए
बीती रात सब उजला गया
मन से सारा कोहरा छट गया

अब धड़कने
सुनायी दे रही है ……..

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