Monday 19 August 2013

रखे थे
कुछ फूल जब डायरी में
उस संग रखे
तुम्हारे उस पल की
सारी बातें, बेचैनी और
वो दिन भी
वो सब
उन्हीं पन्नों के बीच पड़े है
उन पन्नो को छोड़ मैं
शेष पन्नो पर
लिखती हूँ कभी-कभी
नहीं चाहती
उन पन्नों से याद का
एक कतरा भी
इस हवा में घुल सके
फूल तो सिकुड़ गये
पर बाकी सब
वैसे ही कैद है उसमें
गुज़रा वक़्त जैसे रुक कर
सिमट गया पन्नो में
बिना हाथों की छुअन से गुज़रे
न धूप लगी तन की
न मन से गीला हो सका
कैसे इस परिवर्तन को
बदलने से रोक लूँ मैं
अभी जो सिमटा है वो
कल पुर्ज़ा-पुर्ज़ा झड़ जायेगा
राख़ बचेगी बस.......

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