Thursday 2 May 2013

सपना देख रही थी जब मैं
और आँखों में सारे नज़ारे थे
तुम थे मैं थी और रंगीन सितारे थे...
तुमने कुछ हलके से कहा
और मैं सुन नहीं पायी थी
पर क्यूँ तुमने फिर न बोला,
मैंने कितना पूछा था
'छोड़ो' कह कर जब
मैंने इस बात को टाला था.....
तभी तुमने मुंह बना कर
चले जाने को बोला था
कितने जिद्दी हो तुम
कह कर मैं जो मुस्कुराई थी,
तुम्हारी नाराज़गी देख कर
मैं फिर संकुचाई थी
मान भी जाओ क्यूँ
पल में रूठ जाते हो
कितनी ना-नुकुर तुमने
उस पल करवाई थी....
तुमने पलट के जो न देखा
मैं कितनी घबरायी थी
उठ कर भागी और
तुमको रोका फिर
कान पकड़ कर सॉरी बोला,
और तुम ने फिर इतना कहा
पागल हो तुम
मैंने क्या कहा
जो तुमने ना सुना
और इतना क्यूँ
परेशां हो जाती हो
मैं ख्वाब हूँ बस तुम्हारा
क्यों हकीकत में मुझको लाती हो?
तुम प्यारी हो मगर
नहीं मेरी तुम साथी हो,
अपने सपनो से जागो
यूँ कह कर वो चला गया
और मैं जागती रह गयी......

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