Saturday 20 April 2013

भ्रम की बात है या केवल एक पल का खुआब

तुम हो भी यही और या फिर नहीं भी

मैं देखती हूँ अकसर तुमको बहुत करीब

झरती सांसों की लहर में कभी आते जाते नींद के झोंकों में भी

बेशक मेरे एहसास में तुम रवां हो अब

पहले मिल लिया करते थे सपनो में कभी भी

वो दिन वो शामे हर तरफ जब तुम रहे तब

मैं सोचती वही हसीन है जो है तुम संग हर पल तभी

भ्रम की ही तो बात थी वो एक पल का खुआब

तुम थे भी वही और या फिर नहीं भी

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